भगवान श्रीसीताराम
जयति श्रीजानकिबल्लभ लाल, करूँ तब आरति होय निहाल ।।
सीस पर क्रीट मुकुट झलकें,
कपोलन पे झूलैं अलकै,
कर्णमें कर्णफूल चमकै,
नैन कजरारे, मोहनियाँ डारे, सुमन रतनारे,
सो चन्दन कुंकुम केसर भाल ll
मधुर अति मूरत स्यामल-गौर
सुछबि जोड़ी राजत इक ठौर, ।।
नहीं है उपमा कोई और,
निरखि रति लजै, मैन मद तजै, अंग सुभ सजै,
सो भूषन बर मुक्ता - मनि - जाल ।। 211 करूँ
परस्पर दो चकोर, दो चंद,
प्रिया-प्रिय अनुपम सुषमा-कंद
प्रेम-हिय छायो परमानंद,
मंद मृदु हँसन, रुचिर दुति दसन, मनोहर बसन,
दोउ सोहैं गल बहियाँ निज डाल ।। 3 ।। करूँ
बजत बीना सितार सुमृदंग,
सबै मिलि गावत सहित उमंग,
होत पुलकायमान अँग-अँग,
रंग जब चढ़त, , प्रेम हिय बढ़त, नयन जल कढ़त
मधुर स्वर गावत दै दै ताल ।। 4 ।। करूँ
स्वामिनी स्वामी कृपा आगार,
प्रनत जन रामेस्वर आधार,
जोरि कर विनवत बारंबार,
कछु नहीं बनत, नेम-तप-वरत, रहौं पद निरत
करूँ तव आरति होइ निहाल ।। 511 करूँ
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