आरती श्री राम जी की
हरति सब आरती, आरती राम की ।
दहन दुख - दोष, निरमूलिनी कामकी ।।
सुरभ-सौरभ धूप आरती सीस लखन दीपबर मालिका ।
उड़त अघ-विहँग- सुनि ताल- करतालिका।।
भक्त ह्यदि-भवन, अज्ञान-तम-हारिनी ।
बिमल बिग्यानमय, तेज-बिस्तारिनी ।।
मोह-मद-कोह-कलि-कंज-हिमजामिनी ।
मुक्तिकी दूतिका, देह-दुति दामिनी ।।
प्रनत-जन- कुमुद-बन-इंदु-कर-जालिका ।
तुलसि अभिमान-महिषेस बहु कालिका ॥
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