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करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे


करमाँ की रेखा न्यारी


करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।। टेक ॥।
 लख घोड़ा लख पालकी, सिर पर छत्र फिरे । 
हरिश्चन्द्र सतवादी राजा, नीच घर नीर भरे ।। 1 ।। 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।


राजा दशरथ के ताल में, रे सरवन नीर भरे । 
लग्यो बाण राजा के हाथ को, राम ही राम करे ।। 2 ।। 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।


गुरु वशिष्ठ महामुनि ज्ञानी, लिख लिख लगन धरे । 
सियाजी को हरन, मरन दशरथ को, बन-बन राम फिरे ॥13 ॥ 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।


पाँच पाण्डु अधिक सनेही, उन घर भिखो पड़े । 
कीचक आन सताये बन में, हरि वाकी सहाय करे ।। 4 ।। 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।


कित फन्दा कित पारदी, रे कित वो मिरग चरे । 
के धरती को तोड़ो आ गयो फन्द में आय पड़े ।। 5 ।। 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।


तीन लोक भावी के बस में, भावी बस न करे। 
'सूरदास' होनी सो होगी, मूरख सोच करे 116 11 
करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ।

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