सत्संग महिमा
बहे सत्संग का दरिया
बहे सत्संग का दरिया, नहा लो जिसका जी चाहे ।
करो हिम्मत, जरा डुबकी लगालो जिसका जी चाहे ।। 1 ।।
हजारों रत्न हैं इसमें, एक से एक बढ़ आला ।
किसी का डर नहीं कुछ भी, उठा लो जिसका जी चाहे ।। 2 ।।
मिटे संसार का चक्कर, लगे नहिं मौत की टक्कर ।
करे है पार भव सागर, करालो जिसका जी चाहे ।। 3 ।।
बनावे चोर से साहू, मिटावे दुष्टता मन की ।
कटे जड़ मूल पापों का, कटालो जिसका जी चाहे ॥ 4 ॥
बनावे रंक से राजा, बड़े राजों के महाराजा ।
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ अपने का, बनालो जिसका जी चाहे ।। 5 ।।
करत यह मुक्त जीवन ही, मिटे सन्ताप दुख सारे ।
रंगे हरि प्रेम के रंग में, रंगा लो जिसका जी चाहे ।। 6 ।।
0 Comments