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स्वर्ग कहते किसे जानते हम नहीं Lyrics


स्वर्ग कहते किसे जानते हम नहीं


स्वर्ग कहते किसे जानते हम नहीं, 
स्वर्ग का देवता सामने आ गया। 
बन के बालक सलोना अवध भूप का, 
मेरे नयनों में अपवर्ग सुख छा गया ।।


आज बिहँसी दिशाएँ कमल खिल गए, 
टिमटिमाते दिये ये सभी जल गए। 
आज परियों ने मंगल सजाए मुदित, 
मन अनूठा नया चन्द्रमा पा गया ।।


कोकिलाओं ने घोला सुरस कुञ्ज में, 
रागिनी छाई मंगल की अलि गुञ्ज में । 
भाग्य के उन छबीले कलश में अहो, 
प्रेम का पुण्य पीयूष बरसा गया ।।


जो निगम को अगम शुद्ध मन को सुगम, 
देके सरगम मनोरम विषम और सम । 
दास 'गिरिधर' की दृग तूलिका पर वही । 
अपने सुन्दर मधुर चित्र लहरा गया ।।

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